
वरुण सिंह
राजस्थान का अजमेर इन दिनों सुर्खियों में है, यहां पर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह शरीफ के अंदर शिव (भोले नाथ) का मंदिर होने का दावा किया जा रहा है, और दरगाह शरीफ से जुड़ी एक याचिका स्थानीय अदालत में डाली गई है, 850 साल पुरानी ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई के अलावा प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु, महान कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरोजिनी नायडू, पंडित मदनमोहन मालवीय, जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी जैसी हस्तियों ने अकीदत के फूल आकर पेश कर चुके हैं, बता दें कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह शरीफ करीब 850 साल पुरानी है ।
इतिहास पर एक नजर
बता दें कि पूर्वी ईरान के शहर सजीस्तान में 536 हिजरी यानि 1143 ईस्वी को जन्में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में ईरान से अफगानिस्तान होते हुए लाहौर पहुंचे थे, यहां से दिल्ली होते हुए अजमेर में आकर रुक गए, और यहां रहकर वह खुदा की इबादत करने लगे, सूफिज्म पर लिखने वाले सुमन मिश्रा के मुताबिक ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ 850 साल पुरानी है, इस दरगाह का निर्माण धीरे-धीरे हुआ है, तकरीबन 228 साल तक यह दरगाह कच्ची रही है, सुमन मिश्रा के किताब के मुताबिक सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती शांति की तलाश में दुनिया घूमने के बाद लाहौर पहुंचे, अपने 3-4 मुरीदों के साथ वह लाहौर से दिल्ली और फिर अजमेर पहुंचे थे, यहां लोगों को शांति और आपसी मोहब्बत का पैगाम दिया, जिस स्थान पर ख्वाजा साहब ने इबादत की वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली, 1236 ईस्वी रजब के महीने में वह अपने इबादत वाला कमरा में गए, 6 दिन के बाद जब इबादत वाला कमरा का दरवाजा खोला गया, तो ख्वाजा साहब इस दुनियों को अलविदा चुके थे, उसी इबादत वाले कमरा में उनकी मजार बनाई गई, और यही जगह ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ है, हर साल रजब के महीने में ख्वाजा साहब की याद में 6 दिन का उर्स मनाया जाता है ।