आजगढ़ शहर स्थित शिब्ली नेशनल कालेज की 52 सहायक प्रोफेसर की नियुक्तियां अब खटाई में पढ़ती दिख रही है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कमिश्नर आजमगढ़ की जांच आख्या और राजभवन के शासनादेशों का उल्लंघन को देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग की जांच आख्या को शासन से तलब किया है, जिसके बाद शिब्ली के मैनेजमेंट में खलबली मची हुई है, बता दें कि शिब्ली कालेज में वर्ष 2023
में 52 से अधिक सहायक प्रोफेसर की नियुक्तियां हुईं थीं, नियुक्तियों में भ्रष्टाचार और धांधली को लेकर बहुत सी शिकायतें शासन और मुख्यमंत्री कार्यालय तक की गई थी, शिकायतकर्ता राष्ट्रवादी युवा अधिकार मंच के अध्यक्ष शशांक शेखर सिंह पुष्कर सहित अनेक अभ्यर्थियों की शिकायत पर 18 अक्टूबर 2023 को मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रमुख सचिव ने प्रकरण की जांच करने के लिए कमिश्नर आजमगढ़ को आदेश दिया था, कमिश्नर के निर्देश पर जिलाधिकारी आजमगढ़ ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी, इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मेंं शिब्ली कालेज की नियुक्ति प्रक्रिया को अपूर्ण बताते हुए 6-6 आरोपों की पुष्टि कर दी है, भाई भतीजावाद और सगे संबंधियों की नियुक्तियां हुईं, प्राचार्य के स्वयं के भाई और बहनोई की नियुक्ति हुई है, शिब्ली को नियंत्रित करने वाली मातृ संस्था दी आजमगढ़ मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी’ के चेयरमैन के पुत्र की नियुक्ति हुई थी, इस रिपोर्ट को कमिश्नर और जिलाधिकारी ने शासन को भेज दिया, जिस पर कार्रवाई करने की बजाय विभागीय मंत्री के दबाव में इस रिपोर्ट को ही खारिज करते हुए शिकायतकर्ता की शिकायतों को ही बलहीन बता दिया गया, और एक विभागीय जांच कराकर नियुक्ति संबंधी सभी प्रकिया को ठीक बता शिब्ली को क्लीन चिट दे दिया गया था, जिसको लेकर उच्च शिक्षा विभाग और मंत्री के ऊपर सवाल उठ रहे थें, ऐसे में एक अभ्यर्थी डॉ अरविन्द कुमार सिंह ने पूरे प्रकरण को माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में चुनौती दे दी थी, नियुक्ति में राजभवन के 18 मई 2021 के शासनादेश का उल्लंघन करते हुए एपीआई और लिखित परीक्षा के 140 अंकों की निर्धारित शार्टलिस्टिंग प्रक्रिया को ही छोड़ कर सीधे साक्षात्कार कराने को चुनौती दी गई थी, कमिश्नर की जांच आख्या पर शासन द्वारा कार्रवाई न होने को चुनौती दी गई, भाई भतीजावाद और सगे संबंधियों की नियुक्तियों पर रिलेशन बार के आधार पर चुनौती दी गई, 31 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट की कोर्ट नं-9 के विद्वान न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की अदालत में सुनवाई जैसे ही शुरू हुई शिब्ली कालेज से जुड़े पक्ष-विपक्ष के सभी अधिवक्ता, स्टैंडिंग कौंसिल, विश्वविद्यालय तथा शासन के अधिवक्ता उपस्थित रहें। याची डॉ अरविन्द कुमार सिंह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता यूके सक्सेना, अनय श्रीवास्तव तथा ज्ञानेंद्र प्रकाश श्रीवास्तव ने अपना पक्ष रखते हुए पूरी चयन प्रक्रिया को ही चुनौती दी, जिसके समर्थन में राजभवन के शासनादेश और कमिश्नर की जांच आख्या प्रस्तुत किया गया, जबकि विपक्ष की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे और जेपी सिंह ने याची के याचिका और लोकस पर घेरने की कोशिश की,
लगभग 10 मिनट के लिए कोर्ट में पिन ड्राप लाइसेंस उस समय हो गया, जब अदालत याचिका को पढ़ने लगी, अदालत ने पूछा कि मिस्टर स्टैंडिंग कौंसिल! चलिए मान लीजिए कि याची का लोकस नहीं बनता है, तो भी कमिश्नर की जांच आख्या पर क्या कार्रवाई हुई, जिस पर उन्होंने कहा कि इस जांच आख्या के अलावा एक और जांच हुई है, अदालत ने कहा वह आख्या दीजिए, लेकिन वह दे नहीं सके, तब अदालत ने इस विभागीय जांच आख्या को 12 अगस्त तक तलब कर लिया, अब देखना यह है कि एक ही मामले की दो जांच कमेटी की आख्याओं में कितना अन्तर या समानताएं होती हैं, कमिश्नर की जांच आख्या जहां शिब्ली के भ्रष्टाचार की पुष्टि कर दी है, वहीं सूत्रों की मानें तो विभागीय जांच आख्या में क्लीन चिट दे दिया गया है। ऐसे हाल में जो 52 सहायक प्रोफेसर नियुक्तियां प्रक्रिया हुई है, इसमें सभी की धड़कनें बढ़ गई है ।