
रघुवेंद्र सिंह ना केवल हिन्दी सिनेमा, बल्कि बंगाली, मराठी सिनेमा से भी जुड़े हैं। वो जहां शास्त्री विरुद्ध शास्त्री और मनीष पॉल अभिनित हिचकी फिल्म के निर्माता हैं, जिसे कोरोना काल के दौरान अमिताभ बच्चन ने अपने सोशल मीडिया पर रिलीज करते हुए फिल्म और रघुवेंद्र की तारीफ किया था ।
आजमगढ़ । प्रसिद्ध शायर दुष्यंत कुमार की लाइन है कि कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता, “एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो” यह लाइन आजमगढ़ जनपद के बगहीडाड़ निवासी रघुवेंद्र सिंह पर सटीक बैठती है, रघुवेंद्र सिंह आज ना केवल फिल्म निर्माता बने हैं, बल्कि लोकप्रिय अभिनेता कार्तिक आर्यन कि फिल्म चंदू चैंपियन फिल्म का सलाहकार भी बनकर यह साबित कर दिया कि मेहनत व लगन से कुछ भी पाना संभव है । कौन जानता था कि रघुवेंद्र सिंह पूर्वांचल के आजमगढ़ जिले के एक छोटे से गांव बगहीडाड़ से निकलकर प्रयागराज, दिल्ली से होते हुए, उस फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनेंगे, जिसको नज़दीक से देखने का ख्वाब उसने बचपन से ही पाल रखा था। किसको मालूम था कि अपने कॉलेज के शिक्षकों का चहेता और बेहद सौम्य, शर्मीला लड़का आगे चलकर उन माधुरी दीक्षित से मिलेगा, जिनकी फिल्मों के बारे में अपनी बड़ी बहन से सुनकर जो बिना देखे ही फैन हो गया था। पर ये हुआ और वो लड़का आज ना केवल फिल्म निर्माता बना बल्कि लोकप्रिय अभिनेता कार्तिक आर्यन कि फिल्म चंदू चैंपियन फिल्म का सलाहकार भी बना। बता दें कि रघुवेंद्र सिंह का ये सफ़र इतना आसान भी नहीं रहा। आजमगढ़ जिले में एक छोटे से गांव बगहीड़ाड़ में जन्म हुआ, और प्राथमिक शिक्षा गांव में पीपल के पेड़ के नीचे शुरु हुई। कक्षा छह में अपने चचेरे भाइयों और गांव के और लड़कों के साथ बगल के बाज़ार में स्थापित आदर्श इंटर कॉलेज में 12 वीं तक पढ़ाई की। स्वभाव से बेहद सौम्य और शर्मीले रघुवेंद्र स्कूल, कॉलेज में शिक्षकों के प्रिय छात्र हुआ करते थें। उस समय यदि बेस्ट स्टूडेंट का कोई ईनाम मिलता, तो हर साल वही इसके विजेता होतें । गांव में एकमात्र उनके घर में टीवी होने के बावजूद कार्यक्रमों के चुनाव में बड़ों का दखल रहता था। केवल धार्मिक प्रोग्राम ही देखने को मिलते थें। उन्हीं दिनों अपने चाचा की बेटी बंदना से फिल्मों की कहानियां सुनने और माधुरी के बारे में जानने के बाद अनदेखे ही सही, माधुरी के फैन बन गयें। सिनेमा हॉल में पहली फिल्म माता जी की कृपा से मां और मौसी के साथ ननिहाल घोसी में देखी थी। कुछ फिल्में अपने जिले में देखी थीं। माता जी के कड़े अनुशासन और नियंत्रण के बावजूद माता जी अच्छी फिल्में देखने से कभी नहीं रोकती थीं। फिर स्नातक की शिक्षा के लिए मां के कहने पर इलाहाबाद में दाखिला लिया। इलाहाबाद में आने से पहले ही रघु को फिल्मों से अनदेखा प्यार हो चुका था। अपने जिले के कॉलेज के मैनेजर के कहने पर भी सिविल की तैयारी की, बजाए पत्रकारिता में जाने का निर्णय लिया। इलाहाबाद से स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के बाद और अपने सपने को पूरा करने की कड़ी में इलाहाबाद से दिल्ली आ गयें। यहां के इन्स्टिट्यूट में पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया, और फिर पत्रकारिता की शुरुआत की। हमारा महानगर में फिल्म पत्रकारिता करते हुए दैनिक जागरण से जुड़ें। फिल्म
पत्रकारिता से वो अपनी मेहनत और लगन से अपने वरीष्ठ सहकर्मियों के चहेते बन गए, और अपनी शैली से पाठकों में भी लोकप्रिय होने लगें। दैनिक जागरण में रहते हुए उन्हें अपने चहेते अभिनेता और अभिनेत्रियों के साक्षात्कार लेने का अवसर मिलने लगा। अब वो उन एक्टर्स से सीधे मिलने लगें, जिनके साथ होने के सपने उनकी आंखों में बचपन से थें। अपनी वाकपटुता और सौम्य स्वभाव के कारण वो कई अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के चहेते पत्रकार बन गयें। पर अभी मंजिल तक पहुंचने में कई पड़ाव बाकी थें। अब उन्होंने दैनिक जागरण छोड़कर फिल्म फे़यर पत्रिका से जुड़ने का फैसला किया। फिल्म फेयर के लिए उन्होंने कई प्रसिद्ध एक्टर्स का साक्षात्कार लिया। जैसे अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, रनवीर कपूर, आलिया भट्ट, काजोल, माधुरी दिक्षित आदि। जिन एक्टर्स को फिल्मों और अखबारों में देखा था, उनके साथ बैठकर बात करने का अनुभव बयान करना किसी भी फैन के लिए असंभव ही होगा। जिनकी फिल्मों को देखकर बड़े हुए हों, उनसे हाथ मिलाने का अवसर मिलने पर कोई भी फैन लाजवाब ही हो जाएगा। फिल्म इंडस्ट्रीज को नजदीक से जानने देखने का सपना तो पूरा हो चुका था, पर अभी भी ये सफ़र जारी था। मंजिल अभी भी दूर थी। फिल्म समीक्षक के तौर पर कार्य करके रघुवेंद्र का एक सपना तो पूरा हो चुका था। पर अब ये समझ आया कि अब फिल्म समीक्षक से भी आगे जाने का अवसर आ चुका है। तो उन्होंने फिल्मी पत्रकारिता को छोड़कर फिल्म निर्माण की तरफ कदम बढ़ाने का निर्णय लिया। अपने कई साल के अनुभव से वो इतना समझ चुके थें, कि फिल्म निर्माता और सलाहकार के तौर पर सिनेमा को ज्यादे बेहतर तरीके से समाज के सामने पेश कर सकते हैं। उन्होंने कई एक्टर्स को ना सिर्फ मार्गदर्शन दिया बल्कि परेश रावल अभिनित फिल्म शास्त्री विरुद्ध शास्त्री से फिल्म निर्माता के तौर पर जुड़े और ना केवल फिल्म आलोचको बल्कि दर्शकों की भी तारीफें बटोरीं। रघुवेंद्र ना केवल हिन्दी सिनेमा, बल्कि बंगाली और मराठी सिनेमा से भी जुड़े हैं। वो जहां शास्त्री विरुद्ध शास्त्री और मनीष पॉल अभिनित हिचकी फिल्म के निर्माता हैं, जिसे कोरोना काल के दौरान अमिताभ बच्चन ने अपने सोशल मीडिया पर रिलीज करते हुए फिल्म और रघुवेंद्र की तारीफ किया था। वहीं हाल ही आई पैरालंपियन मुरलीकांत पेटकर पर कबीर खान निर्देशित और कार्तिक आर्यन अभिनित फिल्म चंदू चैंपियन फिल्म से भी बतौर सलाहकार जुड़े हैं। वे बंगाली फिल्म रक्तबीज़ के साथ भी जुड़े रहे हैं। रघुवेंद्र फिल्मों के एक बेहद अनुभवी समीक्षक रहे हैं। अब अपने अनुभव का प्रयोग वो नई कहानियों को चुनने और दर्शकों के लिए बेहतरीन फिल्मों को बनाने में करना चाहते हैं। अपनी लगन, मेहनत और शालीनता से आज वो जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, उससे उनसे जुड़े सभी लोग गौरवांवित महसूस करते हैं। पर साथ ही ये भी सच है कि अपने बचपन के सपने को पाने के लिए रघुवेंद्र ने एक लम्बा सफ़र तय किया है। पूर्व राष्ट्रपति मरहूम अब्दुल कलाम साहब ने कहा था, “सपने वो नहीं होतें, जो हम सोने के बाद देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं, जो हमें सोने नहीं देतें।” रघुवेंद्र ने अपने सपनों को कभी भी धूमिल नहीं पड़ने दिया। रघुवेंद्र आगे भी अच्छी फिल्में बनाने के प्रति तत्पर हैं ।
