
आजमगढ़ । रक्षाबंधन के दिन एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने साबित कर दिया कि रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। समाजसेवी इफ्तेखार आज़मी के घर अजमतगढ़ पहुँचीं शहीद रमेश यादव की बड़ी बहन शशिकला, और उन्होंने पूरे स्नेह के साथ अपने इस अपनाए हुए भाई की कलाई पर राखी बांधी। आजमगढ़ के सगड़ी तहसील क्षेत्र के नत्थूपुर गांव के लाल रमेश यादव भारतीय सेना में जवान थे। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। अपनी बहनों शशिकला और चंद्रकला को हमेशा संबल और सुरक्षा का वचन देने वाले रमेश, युद्धभूमि में शहीद हो गए। रमेश के शहीद होने के बाद इन बहनों के हाथों में राखी तो रही, लेकिन बांधने के लिए भाई का हाथ खाली रह गया। इसी खालीपन को भरने के लिए समाजसेवी इफ्तेखार आज़मी ने आगे बढ़कर उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया। तब से लेकर आज तक, वर्षों से यह परंपरा चल रही है। हर वर्ष रक्षाबंधन पर या तो इफ्तेखार आज़मी खुद बहनों के घर पहुंचते हैं, या बहनें अजमतगढ़ आकर अपने इस भाई को राखी बांधती हैं। समय के साथ यह रिश्ता इतना गहरा हो गया है, कि दोनों परिवारों को लगता है मानो वे एक ही घर के हिस्से हों। सिर्फ राखी ही नहीं, मकर संक्रांति पर भी इफ्तेखार आज़मी अपने इस रिश्ते को निभाने में पीछे नहीं रहते। वे हर साल बहनों के घर खिचड़ी, लाई, चूड़ा, दाना, कपड़ा और अन्य उपहार लेकर जाते हैं। यह केवल त्योहार का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि प्रेम, अपनापन और सांस्कृतिक बंधन का प्रतीक है। अलग धर्म के होते हुए भी यह रिश्ता समाज में एकता, भाईचारे और इंसानियत की मिसाल बन चुका है। जहां अक्सर धर्म की दीवारें लोगों को बांट देती हैं, वहीं इफ्तेखार और शहीद बहनों का यह बंधन मोहब्बत और विश्वास का पुल बना रहा है। राखी बांधने के बाद इफ्तेखार आज़मी ने बहन शशिकला को उपहार देते हुए भावुक लहजे में कहा “रिश्ते खून से नहीं, इंसानियत और मोहब्बत से बनते हैं। यह बंधन मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है।”