
1857 के क्रांतिकारी शेख रज्जब ने अपने साथी शेख मुब्बन, शेख बचई और ठाकुर परगन सिंह के साथ आस- पास के कई गांवों में घूम-घूम कर इन्किलावियों को जमा किया। उनके दिलों में आज़ादी की ज्योति को रोशन किया
रिपोर्ट, वरुण सिंह
आजमगढ़ । हिन्दुस्तान में शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा जिसे गुलामी का अंधेरा रास आया हो। वैसे तो प्रत्येक हिन्दुस्तानी के दिल में, चाहे वह शेख का हो या ब्राह्मण का, पठान का हो या राजपूत का, हिन्दू का हो या मुसलमान का सभी के दिलों में आज़ादी की शमे रौशन थीं। देश प्रेमी दिलों में आजादी की रौशन ज्योति की तपिश ने गुलामी की मोटी-मोटी बेड़ियों को पिघला कर रख दिया। इस तरह भारत देश ने गुलामी से छुटकारा पाकर आज़ादी की नेमत को हासिल किया। इस लेख में महान क्रांतिकारी शेख रज्जब अली के भारत माता से मोहब्बत के बारे में चर्चा करेंगे। महान एवं नामी-ग्रामी स्वतंत्रता सेनानियों के संबंध में तो लोग कुछ न कुछ जानते ही हैं, लेकिन वतन के गुमनाम शहीदों के कारनामे तो दूर की बात है, उनके नामों से भी कोई परिचित नहीं है। इस बड़ी कमी को मद्देनजर रखते हुए एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी शेख रज्जब अली शहीद का यहां उल्लेख किया जा रहा है । बता दें कि गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी शेख रज्जब अली का जन्म ग्राम बम्हौर तहसील सदर जनपद आजमगढ़ में हुआ था, जिनमें देश को आज़ाद कराने की दिल में लालसा मौजूद थी। यहां उर्दू की यह मिसाल सही साबित होती है कि-“खूने-नाहक राएगां नहीं जाता” (अनुचित हत्या बेकार नहीं जाती) जब फिरंगियों ने भारत देश पर नाजायज़ क़ब्ज़ा करके आज़ादी के इन्किलाबियों पर जुल्म व सितम ढाए, उन्हें जेलों में बंद किया, उन पर गोलियां बरसाई गई, यहां तक कि उन मासूमों का बेतहाशा खून बहाया गया, उन बे-गुनाहों के बहे हुए खून के कारण पूरे देश में ऐसा माहौल बना, कि केवल शहरों में ही नहीं बल्कि दूर दराज़ के क़स्बे-क़स्बे, गांव-गांव और बस्ती बस्ती में हज़ारों लाखों आज़ादी के मतवाले देश को आजाद कराने के लिए निकल पड़े । उन्हें में से एक थे शेव रज्जब अली जो उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के एक छोटे से गांव के गुमनाम शहीदे वतन थे, जिन्होंने भारत देश की आज़ादी की 1857 की लड़ाई में अपनी वीरता के कारनामें दिखाकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे, उनके साथी शेख मुब्बन, शेख बचई और ठाकुर परगन सिंह ने आस- पास के कई गांवों में घूम-घूम कर इन्किलावियों को जमा किया। उनके दिलों में आज़ादी की ज्योति को रोशन किया, और लोगों को देश की आज़ादी पर मर मिटने के लिए तैयार किया। इसका नतीजा यह हुआ कि उन सभी सरफरोशों ने अपने अपने क्षेत्र में क्रांति के आन्दोलनों में भाग लेकर, अंग्रेज़ों में हड़कंप मचा दी। फिरंगी यह समझने लगे कि ज़िला आज़मगढ़ में भी उन्हें दमन चक्र की नीति लागू करनी पड़ेगी। योजना के तहत अंग्रेज़ों ने विद्रोहियों पर बल का प्रयोग शुरू कर दिया। शेख रज्जब अली के बहुत से साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय की गिरफ्तारियों के कारण शेख रज्जब अली चिन्ता में पड़ गए। हालांकि वह पहले से ही समझते थे कि ताक़तवर अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह का नतीजा तो यह होना ही था। शेख रज्जब अली ने अपने अन्य साथियों की हिम्मत बंधाई। उन्होंने अगला कदम उठाने के लिए आपस में सोच-विचार किया। कुछ समय बाद स्वतंत्रता सेनानी रज्जब अली ने अपने साथियों शेख मुव्बन, शैख बचई, चमरू, इज़्ज़त आदि के साथ आज़मगढ़ की कोतवाली पर ज़ोरदार हमला कर दिया। उन्होंने हवालात का ताला तोड़ कर उसमें बंद आजादी के मतवालों को रिहा कराने का बड़ा कारनामा अंजाम दे डाला।
शेव रज्जब अली का 1857 की क्रांति में योगदान
अंग्रेज़ शासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। ब्रिटिश अधिकारियों के गुस्से का पारा सीमाओं को पार कर गया। इस दौरान शेख रज्जब अली अंग्रेज़ों के पंजों से बच कर अगली रणनीति बनाने के लिए ममरुवापुर गांव में ख़ामोशी से जाकर छुप गए। उधर ब्रिटिश सेना के अधकारियों ने क्रांतिकारी नेता शेख रज्जब अली को शीघ्र ही गिरफ़्तार किए जाने के हुक्म जारी कर दिए। चारों ओर युद्ध स्तर पर तलाश शुरू हो गई। गांव का कोई भी घर या टपरा ऐसा नहीं बचा, जिसकी अंग्रेज़ सिपाहियों ने तलाशी न ली हो। रजब अली कहीं भी नज़र नहीं आए। जैसे-जैसे समय गुज़र रहा था, ब्रिटिश अधिकारियों के गोरे चेहरे कभी गुस्से में लाल होते और कभी उनके माथों पर लकीरों की संख्या बढ़ती जाती थी। परेशान सैनिक अधिकारियों ने आस-पास के सभी इलाक़ों में सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया। पूरे क्षेत्र में खौफ और परेशानी का माहौल बन गया। वह गांव वाले भी जो कि शैख रज्जब अली का पता नहीं जानते थे, परेशान थे। जो जानते थे, वह भी हैरान थे, कि देखो अब क्या होता है। देश प्रेमी गांव वाले यह नहीं चाहते थे कि आज़ादी का नेता फिरंगियों की पकड़ में आए। शेख रज्जब अली की तलाश में ब्रिटिश सेना के घोड़ों की टापों ने पूरे गावों की धरती को रौंद डाला। आज़ादी के मतवाले रज्जब अली साधनों की कमी के कारण कहीं दूर नहीं जा सके। कुछ समय बाद सी.आई.डी. ने उनके छुपने का पता लगा कर अधिकारियों को सूचना दे दी। फिर क्या था, अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट बेनुबुल्स ने पूरी तैयारी से अपने सैनिक अमले के साथ ममरूवापुर गांव पर चढ़ाई कर दी। सैनिकों ने चारों ओर से गांव को पूरी तरह से घेर लिया। शेख रज्जब अली को यह मालूम हो गया कि वह चारों ओर से अंग्रेज़ सेना के घेरे में आ चुके है। उन्होंने अपने मन में ठान रखी थी कि अपने देश के लिए ही जीना है, और देश के लिए ही मरना है। भारत के उस वीर सपूत ने कुछ देर सोचा फिर अपना मन पक्का करके अपनी तलवार उठाई। वह जियाला, फ़िरंगियों से डरे बगैर ब्रिटिश सेना के घेरे में अकेले ही कूद पड़े । भारत का वह वीर सपूत अपनी तलवार तेज़ी से घुमाता अंग्रेज़ सैनिकों के घेरे को चीरता और तोड़ता बाहर निकल गया। सैनिक उस अकेले रज्जब अली की बहादुरी देख आश्चर्य चकित रह गये। सैनिकों ने उसका पीछा किया। रज्जब अली आगे-आगे स्वंय को बचाता और फिरंगियों को थकाते रहे । जब उनको यह अन्दाज़ा हो गया कि अब वह सेना की पकड़ में आ सकता है, तो उन्होंने टॉस नदी में बिना झिझके लम्बी छलांग लगा दी। ब्रिटिश सैनिक उस बहादुर रज्जब अली के करतब देख कर हैरान थे। सैनिकों ने उन्हें नदी में कूदता देख नदी की चारों ओर से घेरा बंदी कर ली। वह क्रांति वीर कुछ समय तक तो नदी में तैरता रहा। उसने मैका पाकर नदी से बाहर निकल कर भागने की कोशिश की। लेकिन उस समय वहां ताक में बैठे एक फ़िरंगी सैनिक की गोली का वह शिकार हो गए । स्वतंत्रता सेनानी शेख रज्जब अली की लाश हाजीपुर घाट पर तड़पने लगी। क्रूर एवं मग़रूर अंग्रेज़ों के बदले की आग इस पर भी ठंडी नहीं पड़ी। उन्होंने उस शहीदे वतन की लाश को चारों ओर से घेर लिया। जालिमों ने उस शहीद के बदन को जगह-जगह से संगीनों से छेद कर ज़ख्मी कर डाला। उनका सर काट कर बदन से अलग कर दिया। एक शहीद की लाश के साथ अंग्रेज़ों का अमानवीय बरताव उनके जुल्म व सितम और दरिन्दगी व वहशीपन की निशानी है। उनके बदले की आग इस पर भी नहीं रुकी, बल्कि उन्होंने शहीद रज्जब अली के गांव का घर जला कर राख कर दिया। उनकी सभी जायदाद ज़ब्त कर ली । शहीद शेख रज्जब अली की लाश को देश प्रेम के जुर्म में कायर फिरंगियों द्वारा बेदर्दी से कितनी सज़ाए दी गई, उन्हें लिखने में क़लम थर्राता है । गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर शेख रज्जब अली शहीद की याद को ताज़ा करके प्रत्येक दिल देश प्रेम से भर जाता है।
अंग्रेज़ शासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। ब्रिटिश अधिकारियों के गुस्से का पारा सीमाओं को पार कर गया। इस दौरान शेख रज्जब अली अंग्रेज़ों के पंजों से बच कर अगली रणनीति बनाने के लिए ममरुवापुर गांव में ख़ामोशी से जाकर छुप गए। उधर ब्रिटिश सेना के अधकारियों ने क्रांतिकारी नेता शेख रज्जब अली को शीघ्र ही गिरफ़्तार किए जाने के हुक्म जारी कर दिए। चारों ओर युद्ध स्तर पर तलाश शुरू हो गई। गांव का कोई भी घर या टपरा ऐसा नहीं बचा, जिसकी अंग्रेज़ सिपाहियों ने तलाशी न ली हो। रजब अली कहीं भी नज़र नहीं आए। जैसे-जैसे समय गुज़र रहा था, ब्रिटिश अधिकारियों के गोरे चेहरे कभी गुस्से में लाल होते और कभी उनके माथों पर लकीरों की संख्या बढ़ती जाती थी। परेशान सैनिक अधिकारियों ने आस-पास के सभी इलाक़ों में सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया। पूरे क्षेत्र में खौफ और परेशानी का माहौल बन गया। वह गांव वाले भी जो कि शैख रज्जब अली का पता नहीं जानते थे, परेशान थे। जो जानते थे, वह भी हैरान थे, कि देखो अब क्या होता है। देश प्रेमी गांव वाले यह नहीं चाहते थे कि आज़ादी का नेता फिरंगियों की पकड़ में आए। शेख रज्जब अली की तलाश में ब्रिटिश सेना के घोड़ों की टापों ने पूरे गावों की धरती को रौंद डाला। आज़ादी के मतवाले रज्जब अली साधनों की कमी के कारण कहीं दूर नहीं जा सके। कुछ समय बाद सी.आई.डी. ने उनके छुपने का पता लगा कर अधिकारियों को सूचना दे दी। फिर क्या था, अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट बेनुबुल्स ने पूरी तैयारी से अपने सैनिक अमले के साथ ममरूवापुर गांव पर चढ़ाई कर दी। सैनिकों ने चारों ओर से गांव को पूरी तरह से घेर लिया। शेख रज्जब अली को यह मालूम हो गया कि वह चारों ओर से अंग्रेज़ सेना के घेरे में आ चुके है। उन्होंने अपने मन में ठान रखी थी कि अपने देश के लिए ही जीना है, और देश के लिए ही मरना है। भारत के उस वीर सपूत ने कुछ देर सोचा फिर अपना मन पक्का करके अपनी तलवार उठाई। वह जियाला, फ़िरंगियों से डरे बगैर ब्रिटिश सेना के घेरे में अकेले ही कूद पड़े । भारत का वह वीर सपूत अपनी तलवार तेज़ी से घुमाता अंग्रेज़ सैनिकों के घेरे को चीरता और तोड़ता बाहर निकल गया। सैनिक उस अकेले रज्जब अली की बहादुरी देख आश्चर्य चकित रह गये। सैनिकों ने उसका पीछा किया। रज्जब अली आगे-आगे स्वंय को बचाता और फिरंगियों को थकाते रहे । जब उनको यह अन्दाज़ा हो गया कि अब वह सेना की पकड़ में आ सकता है, तो उन्होंने टॉस नदी में बिना झिझके लम्बी छलांग लगा दी। ब्रिटिश सैनिक उस बहादुर रज्जब अली के करतब देख कर हैरान थे। सैनिकों ने उन्हें नदी में कूदता देख नदी की चारों ओर से घेरा बंदी कर ली। वह क्रांति वीर कुछ समय तक तो नदी में तैरता रहा। उसने मैका पाकर नदी से बाहर निकल कर भागने की कोशिश की। लेकिन उस समय वहां ताक में बैठे एक फ़िरंगी सैनिक की गोली का वह शिकार हो गए । स्वतंत्रता सेनानी शेख रज्जब अली की लाश हाजीपुर घाट पर तड़पने लगी। क्रूर एवं मग़रूर अंग्रेज़ों के बदले की आग इस पर भी ठंडी नहीं पड़ी। उन्होंने उस शहीदे वतन की लाश को चारों ओर से घेर लिया। जालिमों ने उस शहीद के बदन को जगह-जगह से संगीनों से छेद कर ज़ख्मी कर डाला। उनका सर काट कर बदन से अलग कर दिया। एक शहीद की लाश के साथ अंग्रेज़ों का अमानवीय बरताव उनके जुल्म व सितम और दरिन्दगी व वहशीपन की निशानी है। उनके बदले की आग इस पर भी नहीं रुकी, बल्कि उन्होंने शहीद रज्जब अली के गांव का घर जला कर राख कर दिया। उनकी सभी जायदाद ज़ब्त कर ली । शहीद शेख रज्जब अली की लाश को देश प्रेम के जुर्म में कायर फिरंगियों द्वारा बेदर्दी से कितनी सज़ाए दी गई, उन्हें लिखने में क़लम थर्राता है । गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर शेख रज्जब अली शहीद की याद को ताज़ा करके प्रत्येक दिल देश प्रेम से भर जाता है।
जमींदार शेख रज्जब अली के वंशज
जमींदार शेख जावेद अहमद नबाब, उनकी पत्नी शेख राणा परवीन, उनके बड़े पुत्र शेख राशिद जमींदार, शेख रज्जब अली पुत्र जमीनदार, शेख अब्दुल करीम जमींदार, शेख अब्दुल रहिम्म जमींदार, शेख शाजिया ( पुत्री ) शामिल है ।