आजमगढ़ । सगड़ी तहसील क्षेत्र के रजदेपुर मठ पर गुरु पूर्णिमा पर्व धूमधाम से मनाया गया, गुरु पूर्णिमा के अवसर पर रविवार की सुबह से ही अपने गुरु शिव सागर भारती के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा । गुरु शिव सागर भारती का चरण पखारने के लिए खास तौर से महिलाएं देखी गई । पुरुषों व महिलाओं ने पहले गुरु शिव सागर भारती के चरण धोने के साथ माथे पर तिलक के साथ ही माल्यार्पण कर गुरु का आशीर्वाद लिया, वहीं मठ के महंत शिव सागर भारती भी भक्तों को आशीर्वाद देते देखे गए । इस दौरान पूरे दिन भजन कीर्तन होते रहे, मठ पर श्रद्धालु जहां प्रसाद ग्रहण कर रहे थे । वही वही विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए गए थे । जिसको भक्त लेना नहीं भूल रहे थे, इस दौरान मठ पर व्यवस्था के लिए अलग से भक्तों की टोली प्रधान रजादेपुर के नेतृत्व में पूरे दिन लगी रही । बता दे कि इस वर्ष गुरु पूर्णिमा से एक सप्ताह पूर्व ही मठ से जुड़े लोग मठ व उसके अंदर बने मंदिरों को सजाने का कार्य शुरू कर दिया था, लालगंज संवाददाता विनय शंकर राय के मताबिक
अड़गड़ानंद जी महाराज के शिष्य राणा प्रताप सिंह के कुशल निर्देशन में यथार्थ गीता कुटीर आश्रम् कोटा खुर्द पर गुरु पूर्णिमा पर्व श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया। सर्वप्रथम गुरु जी महाराज की आरती हुई। उसके बाद गीता के प्रकांड विद्वान्, अड़गड़ानंद जी महाराज के शिष्य राणा प्रताप सिंह ने गुरु पूर्णिमा पर्व के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने श्रद्धालुओं को बताया कि गुरु अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला ही गुरु है । अंधकार संसार का प्रतीक है, और गुरु ईश्वर का प्रतीक है। जो संसार की माया को छुड़ाकर ईश्वर की प्राप्ति करा दे, वही गुरु है। गुरु परंपरा का शुभारंभ भगवान शिव से माना जाता है। वह आदि गुरु है, भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ, अर्थात गुरु की कृपा के बिना हृदय में स्थित ईश्वर का दर्शन भी नहीं हो पाता ।इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं, कि श्रद्धा और विश्वास रूपी गुरु अर्थात शंकर की कृपा के बिना सिद्ध पुरुष भी हृदय में स्थित ईश्वर या परमात्मा का दर्शन नहीं कर पाते। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, कि चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टम। गुण कर्म विभागश: यह चारों वर्णों का विभाजन जाति का विभाजन नहीं है, या यह जाति वर्ण के सूचक नहीं हैं। यह गुण और कर्म के आधार पर की गई ग्रेडिंग या विभाजन हैं । हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था है, यह सत्य नहीं है । प्राचीन काल में अपने गुणों के आधार पर कोई भी ब्यक्ति सर्वश्रेष्ठ ऋषि या सर्वश्रेष्ठ विप्र बन सकता था। गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। जो पूर्ण है, वही गुरु है, जो पूर्ण है, वही ईश्वर है, गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु:, गुरु देवो महेश्वर: इस अवसर पर पूर्व प्रधानाचार्य ओम प्रकाश सिंह, विजय सोनकर, प्रमोद सरोज, जनार्दन सिंह, रमेश चंद्र सिंह, धर्मदेव सिंह, राहुल सिंह, भोला सिंह, उर्मिला सिंह, बीरेंद्र सिंह, गुंजा सिंह, निधि सिंह, रेखा सिंह, चित्रा, रीता, संजू, नीलम, डीके सिंह, राजेश, अजय सिंह, राम प्रकाश सिंह, रिंकू, ठाकुर प्रसाद, शिवम, संजय सिंह आदि लोग विशेष रूप से उपस्थित थे।